
शंकराचार्य (Shankaracharya) एक महान आध्यात्मिक आचार्य और दार्शनिक थे, जिन्होंने भारतीय दार्शनिक परंपरा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) भी कहा जाता है, क्योंकि वे प्राचीन भारतीय दार्शनिक परंपरा में पहले शंकराचार्य माने जाते हैं।
आदि शंकराचार्य का जन्म लगभग 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व में केरल के कलाडी नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने अपने जीवन के दौरान भारत के विभिन्न हिस्सों में यात्रा की और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार किया। उन्होंने वेदांत दर्शन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का प्रचार किया और उन्हें विशिष्टाद्वैत वेदांत के नाम से जाना जाता है।
शंकराचार्य ने अपनी विद्वत्ता और ज्ञान के माध्यम से भारतीय दार्शनिक परंपरा को संबल दिया और उसे लोगों के बीच प्रसारित किया। उनके कार्य के परिणामस्वरूप ही आदि शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत दर्शन की नींव रखी, जो आज भी भारतीय दार्शनिक परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

शंकराचार्य ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की हैं। ये ग्रंथ वेदांत दर्शन, आध्यात्मिकता, देवी उपासना, भक्ति और जीवन-ज्ञान पर आधारित हैं। उनकी प्रमुख ग्रंथों में से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
विवेकचूडामणि (Vivekachudamani): यह ग्रंथ आध्यात्मिकता, ज्ञान और मोक्ष के मुद्दों पर चर्चा करता है। इसमें मनुष्य की स्वरूपता, आत्मा की प्राप्ति और ज्ञान के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति का वर्णन है।
अत्मबोध (Atmabodha): यह ग्रंथ आत्मा के ज्ञान पर केंद्रित है और जीवन के उद्देश्य और महत्व को समझाता है।
टैत्तिरीयोपनिषद् भाष्य (Taittiriya Upanishad Bhashya): यह ग्रंथ वेदांत दर्शन के अंतर्गत टैत्तिरीय उपनिषद् के विशेष भाष्य पर आधारित है।
ब्रह्मसूत्रभाष्य (Brahmasutra Bhashya): यह ग्रंथ ब्रह्मसूत्रों के व्याख्यान पर आधारित है और वेदांत दर्शन की महत्वपूर्ण विषयों को समझाता है।